ये इस कहानी का second part है अगर पहला नही पढ़ा तो पढ़ लो जाके। 🤗🙄
अब आगे -
सैम और सरफराज दोनो bike से 2 घण्टे का सफर किये और रात के डेढ़ (1:30) बजे हॉस्पिटल पहुंचे, माँ रो-रो के बेसुध हो चुकीं थी, पापा ventilator पे थे, सामने से जतिन अंकल (पापा के सबसे अच्छे दोस्त, इन्होंने ही सैम को फोन किया था) आते है और सैम के कंधे पे हाथ रखते है और बस इतना कहते "condition सही नही है, ब्लड बहुत बह गया है" ये बात कहने में उन्हें बहुत ताकत लगी थी आँसू भरी आंखे उनकी लाल पड़ चुकी थी। aunty (जतिन अंकल की वाइफ सुधा) सैम की तरफ देखती हैं और बिन कुछ कहे सैम की माँ की तरफ देखती हैं। जो कि आंटी के कंधों पे आधी बेहोश सी पड़ी थीं।
सैम स्तब्ध था, उसका दिमाग ये सब सच मानने को तैयार नही था, दिल की धड़कने उसे गोलियों की बौछार सी सुनाई पड़ रही थी, उसके पैर लड़खड़ा रहे थे, दीवार की टेक भी उसे सहारा न दे सकी और वो घुटनों पर आ गया, पापा से जुड़ी हर एक याद उसके आँखों के सामने उस पल समा गई, इसके पहले की वो दर्द से चीख पाता I.C.U. का दरवाजा खुलता है, मास्क पहने एक सर्जन जिसके दोनो gloves खून से सने थे, वो जतिन अंकल की ओर देखते हुए कहता है- " possibility अभी है, कुछ medicines बोल रहा हूं जल्दी लाइये, बॉडी response कर रही है अब" इतना सुनते ही जैसे सैम के जान-में-जान आ जाती है, अंकल और सैम दोनो ही सर्जन के पास पहुचते है, सैम एक बाह से भीगे चेहरे को पोछते हुए दवाओ के लिए दौड़ जाता है, फिर इन्तेजार और सर्जरी रूम के गेट पे लगी लाल बत्ती के बुझने की चाह में पूरी रात कट जाती है।
सैम सरफराज से लौट जाने को कहता है पर वो नही जाता, और हर सेकंड साथ रहता है।
सुबह के 6 बज जाते है, सैम नींद से जगता है, उसकी पहली नज़र उस लाल बत्ती पर जाती है जो already बुझ चुकी थी। सैम हड़बड़ा के बेंच से उठता है, वो सो गया था, आखिर वो कैसे सो सकता है, शायद जमा देने वाली बाइक राइड की थकान ने उसे सुला दिया था, लेकिन फिर भी क्यों??, तभी उसकी माँ उसके सिर पे हाथ सहलाती हैं जो वहीं उसके पास बैठी थीं और कहती हैं "सब ठीक है - सब ठीक है.. बेटा। पापा बच गए.." ये बोलते वक्त माँ का गला बैठ चुका था,और रुद्ध गया था।
"मुझे मिलना है पापा से" सैम ने तुरंत बोला और उठ खड़ा हुआ।
"अभी नही मिलने दिया जा रहा " जतिन अंकल ने दूसरी छोर पे रख्खी बेंचो पर से बैठे कहा " दोपहर तक इन्हें रूम में शिफ्ट कर देंगे ऐसा बोले है , फिर एक-एक कर के मिल सकते हैं। "
सैम बैठ जाता है उसकी नज़र सरफराज़ पे जाती है जो लिफ्ट की ओर से दोनो हाथो में चाय-बिस्किट लिए चला आ रहा था।
"अबे यरर… 😩 उठने वाले थे तो बता देते तुम्हारी भी चाय ले आते, अब हम नही जाएंगे दोबारा समझे… खुद जाना!! " सरफराज़ नकली सा मुह बनाते हुए कहता है जैसे 1000 ज़ीने चढ़ के आया हो।
सैम मुस्कुरा देता है, और मन ही मन उसका दिल से शुक्रिया करता है पर कुछ बोलता नही।
कुछ घण्टे और बीत जाते है, पापा को रूम मे just अभी शिफ्ट किया गया है। उनसे मिलने सबसे पहले माँ जातीं है और फिर सैम। सैम जब रूम में घुसता है तो पापा की जो हालत थी उसे देख कर बेचैन सा हो जाता है, उसने ये पल ज़िंदगी मे कभी नही चाहा था, उसने हमेशा अपने पिता का चेहरा उसे डाटते, मुस्कुराते या समझाते देखा है, दर्द से कराहते नही। वो उनके पास जाके चुप चाप बैठ जाता है और उन्हें देखता रहता है, खुद से सवाल करता है भगवान से सवाल करता है कि ऐसा उनके साथ ही क्यों हुआ, उन्होंने ऐसा क्या गलत कर दिया था किसी के साथ, सैम को इन सवालों का तो जवाब नही मिलते पर उसे एक सीख ज़रूर मिलती है, कि समय कितनी अनिश्चितता से भरी चीज़ है, हम रोज़ सोचते है कल,परसो या weekends पे हम क्या करेंगे पर ये कभी सोचा? कि आने वाला कल का समय हमारे साथ क्या करेगा।
सैम इन्ही दिमाग के उपजे सवालो में खोया हुआ था कि तभी रूम का गेट खुलता है और Dr.Sudhir (जिन्होंने कल सैम के पिता का ऑपरेशन किया था।) वो अंदर आ जाते है।
Dr - " Sorry to disturb you मैं निकल रहा था, सोचा लास्ट check up करता चलूँ।"
सैम - "अ-आइये" वो उठ जाता है और Dr. को आगे आके check up करने की जगह देता है।
सैम के पाप भी नींद से जग जाते है, और उठ के बैठने का प्रयास करते है पर हिल तक नही पाते, उनकी नज़र अब जाके सैम पे पड़ती है वो मुस्कुरा देते है पर साथ में दर्द भी झलक रहा था जो वो नही छिपा सके।
पापा- "आ गए तुम, तुम्हे तो बस कॉलेज से छुट्टी का बहाना चाहिये,😏 कुछ नही हुआ है मुझे एक दम ठीक हूँ मै उईई..!!! आराम से"
Dr. के इंजेक्शन के साथ ही पापा की उईई निकल जाती है
और सैम,dr. और पापा तीनो हंस पड़ते है😄।
Dr. रीडिंग्स को लिखते हुए सैम से पूछते है "पढ़ाई मे क्या कर रहे हो वैसे?"
"मेडिकल पढ़वा रहे इनको, देखो आगे क्या करेंगे, पढ़ाई-लिखाई में मन तो लगता है नही इनका" सैम के पापा full पंचायती mode में बोलते है और सैम कुछ बोलही नही पता (free fund की बेज्जती जो हो गई।🤓)
Dr. - "अगर ये ज़िन्दगी की कीमत समझता है और जनता है कि एक मरीज के साथ वो कइयों की ज़िंदगी बचा रहा है जो उससे जुड़ी है, तो शायद ये अच्छा डॉक्टर बने, अगर पैसे छपने के लिए आ रहे हो, या किसी को देख के मन कर गया की डॉक्टर बनते हैं, तो रहने दो सिर्फ सर दर्द होगा 😄 पढ़-पढ़ के, और अगर बीच मे पढ़ाई छोड़ दी तो मोहल्ले-गली में खोल लोगे clinc उससे ऊँची उड़ान न होगी 😊"
"अच्छा sir अब आप आराम करिये मै चलता हूं, कल फिर मिलेंगे"
ये कहते हुए Dr. Sudhir रूम से चले जाते हैं।
सैम शांत था, उसका दिमाग विचारो से भरा हुआ था उसे जो सच्चाई हमेशा से पता थी वो किसी और के मुह से सुन के जैसे आज समझ आ गयी। वो अपने आप को एक दम से बदला हुआ महसूस करता है, उसे सब साफ नजर आ रहा था कि वो कितने बड़े भृम मे जी रहा था। बीती रात और इस पल में उसे ज़िन्दगी के असली मायने समझ आ गए थे उसे अब पता था उसका अगला decision क्या होगा।
10 साल बाद…
एक केबिन में रक्खे टेलीफोन पर कॉल आती है
कुर्सी पर बैठा आदमी उसे पिक करता है
दूसरी ओर से - "sir आपके नए assistant आ चुके है, उन्हें आपके cabin में भेज दूँ?"
"हम्म.. भेज दो। " वो आदमी कॉल रख देता है और table पे रक्खी अपनी nameplate को अपनी ओर घूमता है जिस पर नाम लिखा था
Dr. Suryakant madhav maheshvari (MBBS,MS,MCH,DNB)
जिस कुर्सी पर वो बैठा होता है उसके पीछे की अलमारी Awards, Prizes और उसकी degrees से भरी हुई थी।
केबिन का दरवाजा खुलता है।
"Good morning Sir, may i come in?, sir I'm छितिज"
और सैम सोचते हुए मुस्कुरा देता है।
The End
Thanks 😉 for reading reader
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